नवरात्रि के लिए कलश स्थापना और आवश्यक पूजन सामग्री  ghat-sthapana

  • मिट्टी का पात्र और जौ
  • साफ़ की हुई मिट्टी
  • शुद्ध गंगा जल से भरा हुआ सोना, चांदी, तांबा, पीतल या मिट्टी का कलश (स्टील या लोह कलश का उपयोग वर्जित है )
  • साबुत सुपारी
  • मौली
  • कलश में रखने के लिए सिक्के
  • आम या अशोक के पत्ते
  • कलश को ढकने के लिए मिट्टी का ढक्कन
  • साबुत चावल (अक्षत)
  • एक पानी वाला नारियल
  • लाल कपड़ा या चुनरी
  • फूल से बनी हुई माला
  • गंगाजल
  • इलायची
  • लौंग
  • पंचमेवा
  • अगरबत्ती
  • धुप
  • घी
  • मधु (शहद)
  • कपूर
  • पुष्प, फूलों की माला
  • फल
  • पान का पत्ता
  • दुर्वा घास,
  • तुलसी के पत्ते
  • रोली (सिंदूर)
  • लाल चन्दन
  • माँ दुर्गा के श्रृंगार का सामान
  • एक बड़ा दीपक और बत्ती अखंड जोत जलाने के लिए
  • जल,दूध,दही, घी, शहद (पंचामृत के लिए)

मां दुर्गा के जिन स्वरूपों की पूजा होती है उनमें शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्रि देवी हैं जो दुर्गा के रूप हैं। नवरात्रि के पहले दिन देवी शैलपुत्री की पूजा शुरू हो जाती है और पहले ही दिन घटस्थापना की जाती है ।

चैत्र नवरात्र की शुरुआत आन्ध्र प्रदेश एवं कर्नाटक में उगादी से और महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा से । चैत्र शुक्ल पक्ष के नवरात्रों के साथ  हिंदु नवसंवत्सर की शुरुआत हो जाती हैं । वर्ष के प्रथम दिवस में माता की पूजा कर वर्ष का शुभारम्भ करते हैं यह पहला दिवस हिन्दु कैलेण्डर का होता है ।  चैत्र नवरात्रि को राम नवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है क्योँकि भगवान राम का जन्मदिवस चैत्र नवरात्रि के अन्तिम दिन आता है ।

चैत्र नवरात्र  घट स्थापना का शुभ मुहूर्त -घट स्थापना  18 मार्च  को सुबह 06:31 मिनट से सुबह 07:46 मिनट तक का रहेगा कुल अवधि इसकी एक घंटे 15 मिनट है।

24 मार्च को अष्टमी रहेगी चैत्र नवरात्र‍ि में। जो पूरे 9 दिन का व्रत रखेंगे भक्त वह 26 मार्च को पारण कर सकते है।

वैदिक कलश स्थापना विधि

कलश की स्थापना धार्म शास्त्रानुसार प्रतिपदा की शुभ मुहूर्त में करतें है और यह  शुभ समृद्ध वैभव की कमाना के साथ स्थापित किया जाता है शास्त्रानुसार ये मान्यता है की कलश के मुख में विष्णुजी का निवास, कंठ में रुद्र तथा मूल में ब्रह्मा और मध्य में दैवीय मातृशक्तियां निवास करती हैं।

सर्वप्रथम पूजास्थल की शुद्धता की जाती है उसके बाद लाल रंग का कपड़ा बिछाया जाता है कपडे पर चावल रख कर श्री गणेश भगवान का स्मरण करें। इसके बाद मिट्टी के पात्र में एक परत मिट्टी की बिछा कर   पात्र में जौ बोना चाहिए। अब जल से भरा हुआ कलश पात्र के उपर स्थापित करें और इसके मुख पर मौली  से बांध लें। कलश पैर ॐ या स्वास्तिक का शुभ चिन्ह बनायें। कलश के अन्दर गंगा जल फूल , दूर्वा, साबुत सुपारी , सिक्का डालें। उसके बाद अशोक या आम जोभी शुलभ हो उसके पत्ते रखें फिर लाल कपडे और मौली से लपेटे हुए नारियल को रखें ।

अब सभी देवी देवता का आवाहन करें की सभी देवी देवता नौ दिनों के लिए वे इसमें विराजमान होंजायें । अब दीप, धूपबत्ती  जलाकर , पुष्प माला,इत्र अर्पित कर पूजन करें और  कलश को मिठाई, फल आद‍ि समर्पित करें।

नारियल रखते समय कुछ आवश्यक बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिये जैसेः

नारियल का सिर पेड़ की टहनी से जुड़े वाली जगह को (मुख) हमेशा साधक की ओर रखना चाहिये। शास्त्रानुसार नारियल का मुख नीचे की तरफ रखने से शत्रु में वृद्धि होती है। नारियल का मुख ऊपर की तरफ रखने से रोग बढ़ते हैं, जबकि पूर्व की तरफ नारियल का मुख रखने से धन का विनाश होता है।